रमज़ान की तीस दुआ हिन्दी में (Ramzan ki 30 dua in hindi)

रमज़ान के महीने में रमज़ान की 30 दुआ पढ़ना बहुत ही फायदेमंद होता है | यदि आप भी रमजान की 30 दुआ पढ़ना चाहते है तो इस पोस्ट में रमज़ान की तीस दुआ हिन्दी में (Ramzan ki 30 dua in hindi) लिखी गयी है | प्रत्येक मुसलमान को रमज़ान के महीने में रमज़ान की 30 दुआ अवश्य पढनी चाहिए |

Ramzan ki 30 dua in hindi

रमज़ान की 30 दुआ हिन्दी में (Ramzan ki 30 dua in hindi)

यहाँ पढे रमज़ान की 30 दुआ हिन्दी में | रमज़ान के महीने में दुआ करना बहुत फ़ायदेमंद होता है। यहाँ हिंदी में रमज़ान के 30 दुआ दी गई हैं।

  1. हे अल्लाह! हमें रमज़ान में बरकत दे।
  2. हे अल्लाह! हमें लयलतुल कदर में अज़ीब कर दो।
  3. हे अल्लाह! मुझे ईमान का समझ दो।
  4. हे अल्लाह! मुझे जन्नत नसीब करो।
  5. हे अल्लाह! मुझे माफ़ी नसीब करो।
  6. हे अल्लाह! मुझे तसव्वुफ़ का दीदार कराओ।
  7. हे अल्लाह! मुझे लयलतुल कदर नसीब करो।
  8. हे अल्लाह! हमें इस महीने में आपके अतका होने वालों में से बनाओ।
  9. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से शाम की नमाज़ पढ़ने वालों में शामिल करें।
  10. हे अल्लाह! हमें इस महीने में वह लोगों में से बनाओ जिनके लिए जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं।
  11. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नतों का पालन करते हैं।
  12. हे अल्लाह! हमें इस महीने में वह लोगों में से बनाओ जो दान देते हैं।
  13. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो इमान और इहतिसाब के साथ यह महीना रोज़ा रखते हैं और तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते हैं।
  14. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो हराम से दूर रहते हैं और हलाल की बात करते हैं।
  15. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो माफ़ी और जहन्नम से छूटने का हक़ हासिल करते हैं।
  16. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो दुनिया और आख़िरत में معافी और صحت हासिल करते हैं।
  17. हे अल्लाह! हमें जन्नत के लोगों में से बनाओ और हमें जहन्नम की सज़ा से बचाओ।
  18. हे अल्लाह! मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उनके वालिदैन और उनके अनुयाई के अनुसार हमें बनाओ।
  19. हे अल्लाह! हमें वह लोगों में से बनाओ जो माफ़ करते हैं, तौबा करते हैं, माफ़ी की दुआ मांगते हैं और तुम पर भरोसा करते हैं।
  20. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जिनकी दुआ क़बूल होती है और जिन्हें अल्लाह तबारक वताला नसीब देते हैं।
  21. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जो ख़ुशी, सुख और अबादी के नईमों में रहते हैं और हमें तुम्हारी रहमत से बख्श दो, हे सबसे रहम करने वालों के रहम करने वाले!
  22. हे अल्लाह! हमें कुरआन की तिलावत, समझ, उसका गहन विचार और उसके विशेष महत्व का समझने का तौफीक दे।
  23. हे अल्लाह! हमें अपनी रहमत से रहम करो, हमें अपने जन्नत का नसीब दो और हमें तुम्हारी आग से दूर रखो।
  24. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जो अपनी रज़ाओं से अच्छी चीजें खरीदते हैं, गुप्त रूप से और खुले रूप से दान करते हैं और तुम्हारे लिए दुर्घटनाग्रस्त स्थानों पर दान करते हुए दुखी नहीं होते हैं।
  25. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जो तुम पर भरोसा करते हैं, तुम्हारे आदेशों का अनुसरण करते हैं, तुम्हारे धर्म को सच्चाई से अनुसरण करते हैं और तुम्हें प्रेम करते हैं।
  26. हे अल्लाह! हमें उन सभी नेक बंदों में से बनाओ जो बात सुनते हैं और उसका अच्छा पालन करते हैं। वे ही लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने हदायत दी है और वे ही लोग हैं जो समझदार हैं।
  27. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जो तुम्हें याद करते हैं, तुम्हें धन्यवाद देते हैं, और वे काम करते हैं जो तुम्हें पसंद होते हैं और जो तुम्हें खुश करते हैं।
  28. हे अल्लाह! हमें उन लोगों में से बनाओ जो कदर पर ईमान रखते हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
  29. हे अल्लाह! हमें उन निस्संदेह बंदों में से बनाओ जो तुम्हारे लिए काम करते हैं और तुम्हारे साथ भरोसा करते हैं।
  30. हे अल्लाह! हम तुमसे यह दुआ करते हैं कि हम तुम्हारे सिवा कोई भी इलाह नहीं है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारा बंदा और तुम्हारे रसूल हैं।

रमज़ान की 30 दुआ उर्दू में

  1. अल्लाहुम्मा बारिक लना फी रमज़ान (Allahumma barik lana fi Ramadan)
  2. अल्लाहुम्मा अज़िब्ना लिलैलति-ल-कद्र (Allahumma ajibna lilailatil-qadr)
  3. अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुक फ़ह्माल-इमान (Allahumma inni asaluka fahmatal-iman)
  4. अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुक जन्नत (Allahumma inni asaluka Jannat)
  5. अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुक मगफिरता (Allahumma inni asaluka maghfirata)
  6. अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुक तज़व्वुफ़ (Allahumma inni asaluka tajawwufa)
  7. अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुक लैलतुल कद्र (Allahumma inni asaluka laylatul qadr)
  8. अल्लाहुम्मा اجعلنا من عتقائك في هذا الشهر (Allahumma aj’alna min ‘atqa’ika fi hadha al-shahr)
  9. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يُصَلِّي التَّرَاوِيحَ (Allahumma aj’alna min mann yusalli al-tarawih)
  10. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ تُفْتَحُ لَهُ أَبْوَابُ الْجَنَّةِ فِي هَذَا الشَّهْرِ (Allahumma aj’alna min mann tufthah lahu abwab al-jannah fi hadha al-shahr)
  11. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَعْمَلُ بِسُنَّةِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ (Allahumma aj’alna min mann ya’mal bi sunnati Rasoolillah sallallahu ‘alayhi wa sallam)
  12. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَتَصَدَّقُ فِي هَذَا الشَّهْرِ (Allahumma aj’alna min mann yatasaddaqu fi hadha al-shahr)
  13. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَصُومُهُ وَيَقُومُهُ إِيمَانًا وَاحْتِسَابًا (Allahumma aj’alna min mann yasumuhu wa yaqumuhu imanan wa ihtisaban)
  14. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَحْرُمُ الْحَرَامَ وَيُبَايِعُ فِي الْحَلَالِ (Allahumma aj’alna min mann yahrumu al-harama wa yubayi’u fi al-halal)
  15. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَحْصُلُ عَلَى مَغْفِرَةٍ وَعَتَقٍ مِنَ النَّارِ (Allahumma aj’alna min mann yahsulu ‘ala maghfirahin wa ‘ataqin min al-nar)
  16. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَحْصُلُ عَلَى الْعَفْوِ وَالْعَافِيَةِ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ (Allahumma aj’alna min mann yahsulu ‘ala al-‘afwi wa al-‘afiati fi al-dunya wa al-akhirah)
  17. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنْ أَهْلِ الْجَنَّةِ وَأَعِذَّنَا مِنْ عَذَابِ النَّارِ (Allahumma aj’alna min ahl al-jannati wa a’izzna min ‘adhabi al-nar)
  18. اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَاجْعَلْنَا مِنْ أَتَبَّاعِهِمْ وَأَوْلِيَائِهِمْ (Allahumma salli ‘ala Muhammadin wa ali Muhammadin wa aj’alna min atba’ihim wa awliyaihim)
  19. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَغْفِرُ وَيَتُوبُ وَيَسْتَغْفِرُ وَيَتَوَكَّلُ عَلَيْكَ (Allahumma aj’alna min mann yaghfiru wa yatubu wa yastaghfiru wa yatawakkalu ‘alayk)
  20. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ تَجِبُ لَهُ الدُّعَاءُ وَيَنْصُرُهُ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ (Allahumma aj’alna min mann tajibu lahu al-du’a’u wa yansuruhu Allahu ‘azza wa jalla)
  21. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنْ أَهْلِ الْفَرَحِ وَالسُّرُورِ وَالنَّعِيمِ الأَبَدِينَ بِرَحْمَتِكَ يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ (Allahumma aj’alna min ahl al-farahi wa al-sururi wa al-na’imi al-abadiyna bi-rahmatika ya arham al-rahi’min)
  22. اللَّهُمَّ ارْزُقْنَا تِلَاوَةَ الْقُرْآنِ وَتَدْبُرَهُ وَتَفْهُمَهُ وَتَعَظُّمَ حُرْمَتِهِ (Allahumma rzuqna tilawata al-Qur’ani wa tadburahu wa tafhumahu wa ta’adhimu hurmatihi)
  23. اللَّهُمَّ ارْحَمْنَا بِرَحْمَتِكَ وَارْزُقْنَا جَنَّتَكَ وَجَنِّبْنَا نَارَكَ (Allahumma irhamna bi-rahmatika wa rzuqna jannataka wa jannibna naraka)
  24. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِمَّنْ يَنْفَقُونَ مِنْ طَيِّبِ مَا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَجَهْرًا وَلَا يَأْتِيهِمْ إِلَّا مَا هُوَ خَيْرٌ لَّهُمْ وَلَا يَحْزُنُونَ فِي سَبِيلِكَ (Allahumma aj’alna min mann yanfaquun min tayyibi ma razaqnahum sirran wa jahrana wa la yatiham illa ma huwa khayrun lahum wa la yahzunun fi sabīlika)
  25. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنَ الْمُتَوَكِّلِينَ عَلَيْكَ وَالْمُتَفَوِّتِينَ لِأَمْرِكَ وَالْمُخْلِصِينَ لِدِينِكَ وَالْمُحِبِّينَ فِيكَ (Allahumma aj’alna min al-mutawakkilin ‘alayka wal-mutafawwitiin li-amrika wal-mukhlisina li-dinika wal-muhibbina fika)
  26. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنْ عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ أُوْلَـٰئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ وَأُوْلَـٰئِكَ هُمْ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ (Allahumma aj’alna min ‘ibadika as-salihin alladhina yastami’un al-qawla fayattabi’un ahsanahu, ulai’ka alladhina hadahumu Allah wa ulai’ka hum ulu al-albab)
  27. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنَ الَّذِينَ يَذْكُرُونَكَ وَيَشْكُرُونَكَ وَيَعْمَلُونَ بِمَا تُحِبُّ وَتَرْضَىٰ (Allahumma aj’alna min alladhina yadhkuronaka wa yashkurunaka wa yamaluna bima tuhibbu wa tarda)
  28. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْقَدَرِ خَيْرِهِ وَشَرِّهِ (Allahumma aj’alna min alladhina yuminuna bil-qadari khayrihi wa sharrihi)
  29. اللَّهُمَّ اجْعَلْنَا مِنْ عِبَادِكَ الْمُخْلِصِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ لِوَجْهِكَ الْكَرِيمِ وَيَتَوَكَّلُونَ عَلَيْكَ (Allahumma aj’alna min ‘ibadika al-mukhlisina alladhina ya’maluna liwajhika al-karim wa yatawakkaluna ‘alayk)
  30. اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ يَا رَبَّنَا بِأَنْ نَشْهَدَ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ وَأَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُكَ وَرَسُولُكَ (Allahumma inna nas’aluka ya Rabbana bi-an nashhada la ilaha illa anta wa anna Muhammadan ‘abduka wa rasuluka)

रमज़ान की 30 दुआ पढ़ने के फायदे

रमजान की 30 दुआ पढ़ने के कई फायदे होते हैं। यहाँ कुछ फायदे हैं जो दुआ पढ़ने से मिलते हैं:-

  1. दुआ का पढ़ना इबादत है और इबादत से मनुष्य की रूह को शांति मिलती है।
  2. दुआ की शक्ति से हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
  3. दुआ करने से हमारे मन में शुद्धता आती है |
  4. दुआ की शक्ति से हमारे जीवन में अधिक सकारात्मकता आती है और हमें समस्याओं से निपटने की शक्ति मिलती है।
  5. दुआ के बाद हमारे दिमाग में शांति और सुख की भावना आती है।
  6. दुआ के जरिए हमारा रिश्ते अल्लाह के साथ मजबूत होते हैं और हमारे संबंध दूसरों के साथ भी सुधरते हैं।
  7. दुआ के पढ़ने से हमें अपनी गलतियों का अहसास होता है और हमें निजी और सामाजिक जीवन में सही राह दिखाता है |

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